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लौट आए फगुनहट के पाहुने / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
रुई धुनकर
चल दिए वापस धुने
सर्दियाँ बीतीं
हुए दिन कुनकुने !
फिर हवा की
गर्म हुईं हथेलियाँ
रंग में डूबीं
प्रसँग-पहेलियाँ
पादपों की गोद में
आश्वस्त हैं
कम्र तन्वँगी
नवेली वेलियाँ
कुछ कुहासे
रह गये फिर अधबुने !
भुरभुरे-से
रेत के टीले हुए
अग्नि-पुत्र पलाश
मग़ज़ीले हुए
एक शापित यक्ष
मर्माहत हुआ
फिर वसन्ती गीत-स्वर
गीले हुए
लौट आए
फगुनहट के पाहुने !