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‘मैं प्रियतम, तू प्रेयसि मेरी’ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

‘मैं प्रियतम, तू प्रेयसि मेरी’-यों कहना है निरा प्रवाद।
‘तू मम प्राण, प्राण मैं तेरे-यह भी है प्रलाप-संवाद॥
‘तू मेरी, मैं तेरा’-राधे! यह भी नहीं साधु व्यवहार।
समुचित नहीं कभी हममें-’तू-मैं’ का को‌ई भेद-विचार॥