भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलेरा’ की याद में / शिवप्रसाद जोशी
Kavita Kosh से
जिसे कहते हैं कामना
बस अब किसी वक़्त किसी भी वक़्त
पूरी नहीं होती
इस तरह बहुत दूर तक वक़्त टंगा है
इंतज़ार के बहुत लंबे तार में
फड़फड़ाता रहता है
एक बहुत बड़ा सवाल
कब तक आख़िर कब तक
की पुकार
झन्न-झन्न बजती हुई
वजूद के कान में
गर्दन झुकाए बुदबुदाता जाता वह
हमेशा हमेशा।