चौके में बंदर-बंदरिया पका रहे हैं खाना,
‘पाक-शास्त्री’ समझें खुद को, आता नहीं बनाना।
दाल पकाई बंदरिया ने, बंदर गूँधे आटा,
लगे सेंकने दोनों मिलकर आलू-भरा पराँठा।
एक पराँठा बना, तभी बंदर बोला-‘ला थाली ;
आधा-आधा खा लें इसको, तू मेरी घरवाली’!
खाना शुरू किया दोनों ने, मिर्च दाल में भारी,
भागे खाना छोड़, लगी जब ‘सी-सी’ की बीमारी।
[बाल-भारती, नवंबर 1997]