‘स्वर्ण-दीप’ की शिखा चाँदनी निगल गयी / विमल राजस्थानी
सुनेगा कौन मा ! यहाँ तुम्हारे दर्द की कथा
वृथा प्रकट करो न री ! आँसुओं के मिस व्यथा
जगमगा रहे थे जो दिये अँधेरी रात में
बुझ गये सभी स्वतंत्रता के नव प्रभात में
दे हृदय का रक्त जो जला सके बुझे दिये
मिला न एक भी अरी ! इन पत्थरों की पाँत में
(हिला न एक भी अरी ! इन पत्थरों की पाँत में)
सिसकियों से ऊब कर मा पुकारती रही
आँसुओं में डूब कर मा गुहारती रही
मा पुकारती रही
मा गुहारती रही
गुलामियों की बेड़ियों से हो गये हैं घाव जो
रंध्र-रंध्र में रमे दर्द के प्रभाव को
राम-राज्य की नवीन कल्पना बिखर गयी
मा के लाड़लों के रोटियों के भी अभाव को-
(ओ) राजनीति के सखा ! तुम मिटा सके नहीं
कूटनिति के सखा ! तुम हटा सके नहीं
कहो, कहाँ गयी तुम्हारी वह पुरानी साधना ?
त्याग की, विराग की वह पुनीत भावना ?
वह पवित्र भावना ?
वह पुनित भावना ?
अब तो यह दशा है-आँख की शरम भी धुल गयी
‘स्वर्ण-दीप’ की शिखा चाँदनी निगल गयी
रे चाँदनी निगल गयी
तुम सहेजते रहे तिजोरियों में गड्डियाँ
औ’ उधर करोड़ों लाड़लों का दुख बटोरकर
रूप गिरगिटी तुम्हारा मा निहारती रही
सिसकियों में डूबकर मा गुहारती रही
रे ! मा पुकारती रही
‘पंचशील’ की तुम्हारे उड़ रही हैं धज्जियाँ
चीनियों के बूँट रौंदते बरफ की चोटियाँ
कर्ज से विदेशियों के लद रही है योजना
देश में इधर अभाव वस्त्र का, न रोटियाँ
टूटती कमर करों के बोझ से निढाल हो
जिस गरीब देश में अकाल ही अकाल हो
जिस गरीब मुल्क के रहनुमा हों बदगुमाँ
दोनों हाथों लूटने को राजनिति ढाल हो
जिसके राज में बुलंदियोपै नारा घूस का
तुम मुकाबिला करोगे कैसे चीन-रूस का ?
क्यों दरिद्रता की पैनी छूरियाँ चुभा रहे ?
राष्ट्र का हृदय-कमल रक्त में डुबा रहे ?
धज्जियाँ उड़ा रहे हो क्यों उसी के प्यार की ?
जो हृदय का रक्त दे तुम्हें सँवारती रही
तुम्हें दुलारती रही
तुम्हें सँवारती रही
वक्त शेष है अभी, देश के सपूत ! सुन
मा पुकारती तुम्हें, भ्रष्ट देवदूत ! सुन
लौट आ कि अब भी राष्ट्र-शक्ति तेरे साथ है
लुटी-पिटी वसुंधरा की लाज तेरे हाथ है
तुम्हें पुकारती हैं बर्फ की गुलाम चोटियाँ
कि जिनके साये में विभूतियाँ पहन लँगोटियाँ-
स्वर्ग को धरा पै खींच लायीं, उनकी ओर जो-
भी तकेगा, उनकी आज काट-काट बोटियाँ-
हम चरण पै उसके डाल देंगे जो कि देश को-
हिम किरीटनी के रूप में सिंगारती रहीं
दे हृदय का रक्त जो हमें सँवारती रही
हमें दुलारती रही
सिसकियों में डूब कर मा पुकारती रही
आँसुओं में डूब कर मा गुहारती रही