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’को’ के द्वारा कविता / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
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‘को’ के द्वारा क्या कुछ लिखा जा सकता है ?
इस युग में ? अभी ?
यही लो जैसे लालटेन —
कहा जा सकता है, लालटेन के पास क्या तुम बैठी नहीं हो ?
पूर्ण गोल-गोल चन्द्रमा के नीचे
क्या देख नहीं रही हो झाऊ की गाछ कतार-दर-कतार ?
मेरे यहाँ आकर कुर्सी पर बैठते ही
क्या नहीं कहा, किसे आज जल्दी-जल्दी
घर जाना होगा ?
इस तरह से ‘को’ के द्वारा अगर बातचीत करते हैं
इस शून्य दशक के बच्चे - बच्चियाँ,
तुम कितनी हंसी उड़ाओगे ? उड़ाओ, उड़ाओ, हंसी उड़ाओ ना !
उनसे तो मैं नहीं कहूँगा
‘को’ के द्वारा तुम्हारे लिए कविता लिखकर
कितने आनन्द से मर गया उजबक !
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी