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’भोगोंमें सुख है’-इस भारी भ्रमको हर लो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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’भोगोंमें सुख है’-इस भारी भ्रमको हर लो, हे हरि! सत्वर।
तुरत मिटा दो दुःखद सुखकी आशा‌ओंको, हे करुणाकर!॥
मधुर तुम्हारे रूप-नाम-गुणकी स्मृति होती रहे निरन्तर।
देखूँ सदा, सभीमें तुमको, कभी न भूलूँ तुमको पलभर॥
ममता एक तुम्हींमें हो, हो तुममें ही आसक्ति-प्रीति वर।
बँधा रहे मन प्रेमरज्जुसे चारु चरण-कमलोंमें, नटवर!॥
दिखता रहे मधुर-मनहर मुख कोटि-कोटि शरदिन्दु-सुखाकर।
सुनूँ सदा मधुरातिमधुर मुनि-मन-‌उन्मादिनि मुरलीके स्वर॥
तन-मनके प्रत्येक कार्यसे पूजूँ तुम्हें सदा, हृदयेश्वर।
सहज सुहृद उदारचूड़ामणि! दीन-हीन मुझको दो यह वर॥