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’स’ के प्रति / कीर्ति चौधरी
Kavita Kosh से
चाय की मेज़ पर यों ज़ोर-ज़ोर मत हँसो
भीड़ों में मस्ती बेपरवाही से मत धँसो
तुम्हें भी तो दर्द कहीं होगा ज़रा उसे कहो
मत सहो, यों मेरे मित्र, अरे, मत सहो ।