भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
(नवीन युग कविता का अंश ) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
नवीन युग (पद)
आओ हे नवीन युग आओ रखा शान्ति के,
चलकर झरे हुये पत्रों पर गत अशान्ति के,
आओ बर्बरता के शव पर अपने पग धर,
खिलो हंसी बन पीड़ित पृथ्वी के मुख पर,
करो मुक्त मानव को, मानव के बन्धन से,
खोलो सब के लिये द्वार सुख के नन्दन के।
निखिल विश्व मेंमिलकर अपनापन खेाने दो,
खाने देा मुझे अछूत के साथ बैठकर,
जाने दो मुझको मुसलिम के धर के भीतर,
पीने दो मुझे इसाई धर का पानी।
(विराट ज्योति पृष्ठ 10)