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...और अंत में : एक अकेले का गाना / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
धन्य प्रिया तुम जागीं
ना जाने दुःखभरी रैन में कब तेरी अँखियाँ लागीं ।
जीवन नदिया, बैरी केवट, पार न कोई अपना
घाट पराया, देस बिराना, हाट-बाट सब सपना ।
क्या मन की, क्या तन की, किहनी अपनी अँसुअन पागी ।। धन्य प्रिया...
दाना-पानी, ठौर-ठिकाना, कहाँ बसेरा अपना
निस दिन चलना, पल-पल जलना, नींद भई एक छलना ।
पाखि रूँख न पाएँ, अँखियाँ बरस-बतरस की जागीं ।। धन्य प्रिया...
प्रेम न साँचा, शपथ न साँचा, साँच न संग हमारा
एक साँस का जीवन सारा, बिरथा का चौबारा ।
जीवन के इस पल फिर तुम क्यों जनम-जनम की लागीं ।। धन्य प्रिया...
धन्य प्रिया तुम जागीं
ना जाने दुःखभरी रैन में कब तेरी अँखियाँ लागीं ।