भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
...तक / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
दिल में नासूर बने शब्द
टूटता संयम-बिखरता विश्वास
चलना, चलते रहना
शायद पहचान ले कोई
समझे तो सही
राज खामोशी का
प्रथम खो गया है
पता चलता है पराभव भी हो गया है
प्रताड़ित पल-पल
मजबूरी सहेजने की
लाचारी सहने की
साथ-साथ रहने की
बनाते रहना ब्रेन-ट्यूमर