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103 / हीर / वारिस शाह

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मलकी जाए के वेहड़े विच पुछदी ए वेहड़ा केहड़ा भाइयां सावयां<ref>बराबर दे</ref> दा
साडे माही दी खवर है किते अड़ियो किधर मारया गया पछोतावयां दा
जरा हीर कुड़ी उहनूं सददी ए रंग धोवंदी पलंघ देयां पावयां दा
रांझा बोलयां सथरो मन्न आकड़ एह जे पिआ सरदार नथावयां दा
सिर पटे सफा कर सोए रिहा जिबे बालका मुन्नया बावयां दा
वारस शाह जयों चोर नूं मिले वाहर<ref>चोर को ढूँढ़ने वाले लोगों का टोला</ref> उमे साह मरे मारया हावयां दा

शब्दार्थ
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