भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

110 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एहदी वढ लुडके<ref>कानों के बुंदे</ref> कोह जुंडयां नू गल घुट के डूंघड़े बोड़िये नी
सिर भन्न सू नाल मधानियां दे ढूही<ref>गुदा</ref> नाल खड़ताल<ref>जोर से लात मारनी</ref> तोड़िये नी
एहदा दातरी चाल चा ढिड पाड़ो सूई अखियां दे विच पोड़ये नी
वारस चाक तों एह ना मुड़े मूलों असीं रहे बहुतेरड़ा होड़िये नी

शब्दार्थ
<references/>