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14 / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
धुरी नहीं
धरती घुमा करती है भाई !!!
एक घड़ी का बादल
एक बहाना भर है,
आधे क्षण की सांझ
अधूरी छलना
अँधियारा तो दृष्टि दोष है, भाई !
और सुबह भी
नींद जगाने का सपना है
एक बार जलकर
सूरज की ईधन बुझा नहीं करती है भाई !
छाया
मिलती है केवल झुरमुट के नीचे
फिसलन होती है
केवल काई पर
मौसम खुरच-खुरच जाते हैं तनको
गर्म मुहानों से आती
सासों की अपनी भी क्षमता होती है
मन के संकल्पित पठार पर
कोई असर नहीं होता है भाई !
धुरी नहीं
धरती घुमा करती है भाई !