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15 जून 1982 / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
मैं चीख़ता हूँ बिनआवाज़
नहीं दीखता डॉक्टर का चेहरा
नर्स की आकृति नज़र नहीं आती
सुनाई तक नहीं देता कुछ
भूलने लगतीं सबसे प्रिय कविता की पंक्तियाँ
जद्दोजहद के बावजूद याद नहीं आती भरोसे की किताब
तैरती है ऊपर कोई हिंस्र छाया
मैं टटोलना चाहता हूँ ख़ुद के होने को
गिरता है अँधेरे में मेरा दाहिना हाथ
थाम लिया जाता है अधबीच जो
मैं इस थामने को 15 जून 1982 से जानता हूँ।