भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

176 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हीरे इशक ना मूल सवाद दंदा नाल चोरियां अते उधालियां दे
किड़ा<ref>आवाजें</ref> पौंदियां मुठे हा देस विचों किस्से सुने सन खूनियां गालियां दे
ठगी नाल तैं महीयां चरावा लइयां एह राह ने रनां दियां चालियां दे
वारस शाह सराफ सभ जाणदे नी ऐब खोटयां पैसयां वालियां दे

शब्दार्थ
<references/>