भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
194 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
ढाडी भगतीए कंजरियां नकलिए सन अते डूम सरोद वजाए के जी
कशमीरी ते दखनी नाल वाजे भेरां तुरियां छन वजाए के जी
केसर थींनड़े पंगां दे पेच आहे घोड़े लूल्ह हमेल<ref>गले के गहने</ref> छनकाए के जी
काठियां सुरख बनात दीयां हेठ ताज़ी<ref>अरबी घोड़े</ref> दारू पींवदे धरगा<ref>नगारा</ref> वजाए के जी
फुलां सेहरयां तुरियां नाल लटकन टके दितो ने लख लुटाए के जी
वारस शाह मुख ते बन्ह मुकट सोहन सेहरे बन्ह बनाए के जी
शब्दार्थ
<references/>