भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

207 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काज़ी मां ते बाप करार कीता हीर रांझने नाल वयाहुनी ए
असां ओसदे नाल चा सिदक कीता गल गोर<ref>कब्र तक</ref> दे तीक निभाहुनी ए
अन्त रांझे नूं हीर परना देनी कोई रोज दी एह पराहुनी ए
वारस शह ना जानदी मैं कमली खोरश<ref>खुराक</ref> शेर दी गधे ने डाहुनी ए

शब्दार्थ
<references/>