भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
235 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
अगे चूड़ियां<ref>कंवार वेले</ref> नाल हंडाइयों नी जुलफां कुंडलदार हुन देख मियां
घत कुंडलां नाग सयाह पलमण<ref>लटकते</ref> वेखे ओह झला जिस लेख मियां
मल वटना लोड़ ददासड़े दा नयन खूनियां दे भरन भेख मियां
आ हुसन दी दीद कर देख जुलफां खूनी नयनां दे भेख नू वेख मियां
शब्दार्थ
<references/>