भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

24-1-1924 / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा लैम्प मत जलाओ
पड़नी नहीं चाहिए बर्फ़ पर रोशनी
आधी रात की तरह है गहरा अन्धेरा
गिर रही है बर्फ़... उड़ रही है
चल रही है अन्धेरे में
और याद कर रहा हूँ मैं ...

गिर रही है बर्फ़... बुझ चुके हैं लैम्प
और अन्धेरा रेंग रहा है पैरों के नीचे
और शहर रह गया है बाक़ी
किसी अन्धे की तरह बर्फ़ में

मेरा लैम्प मत जलाओ... मत छुओ उसे
यादें गड़ रही हैं दिल में
चाकू की तरह चुभ रही हैं
पड़ रही है बर्फ़... और मैं याद कर रहा हूँ...।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय