भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
257 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
रल चेलयां ने चा मता कीता बाल नाथ नूं पकड़ पथलयो ने
छड दवार उखाड़ भंडार चले जा राह ते वाट<ref>रास्ता</ref> सब मलयो ने
सेलियां टोपियां कुश्रदां छड चले गुस्से जी दे नाल उथलयो ने
वारस शाह ना रब्ब बखील<ref>ईष्र्यालु</ref> होवे चारे राह नसीब दे मलयो ने
शब्दार्थ
<references/>