भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
265 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
कहे नाथ रंझेटया समझ भाई सिर चाहिए जोग भरेटड़ी<ref>भार</ref> नूं
अलख नाद वजाए के करे निहचा मेल आवना टुकड़ रोटड़ी नूं
असीं मुख अलूद ना झूठ होलां चार लयावना अपनी खोतड़ी नूं
वडी मां बराबरां जाणीए जी अते भैण बराबरां छोटड़ी नूं
जती सती नमाणया हो रहिये साबत रखना इस लंगोटड़ी नूं
वारस शाह मियां लै के छुरी कोई वढ दूर करीं इस बोटड़ी<ref>इंद्री</ref> नूं
शब्दार्थ
<references/>