भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

277 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धाया टिलयों राह लै खेड़यां दा चलया मींह जिउं आंवदा उठ उते
काबा रख मथे रब्ब याद करके चढ़या खेड़यां दी सजी गुठ उते
नशे नाल झुलारदा मसत जोगी जिवें सुंदरी झूलदी उठ उते
चिमटा खपरी फांवड़ी डंडा कूंडा भग पोसत चा वधी सू पिठ उते
एवें सरकद आंवदा खेड़यां नूं जिवें फौज चढ़ आंवदी लुट उते
वैराग सन्यास जिउं लड़न चले रख हथ तलवार दी मुठ उते
वारस शाह वढ़या जूह खेड़यां दी साईं होया रंझेटे दी पिठ उते

शब्दार्थ
<references/>