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292 / हीर / वारिस शाह

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घर आ ननाण ने गल कीती भाबी इक जोगी नवां आया नी
कन्नी ओसदे दरशनी मुंदरां ने गल मेखला<ref>गले का गहना</ref> अजब सहाया नी
फिरे ढूंढ़दा विच वेलीयां दे कोई ओसने लाल गवाया नी
नाले गांवदा ते नाले रोंवदा ए वडा ओसने रंग मचाया नी
हीरे किसे रजवंस<ref>राजाओं का वंश</ref> दा ओह पुतर रूप तुध थीं दून सवाया नी
विच त्रिंजणां गाउंदा फिरे भौंदा अंत उसदा किसे ना पाया नी
फिरे वेखदा वौहटियां छैल<ref>सुंदर</ref> कुड़ियां मन किसे ते नांह भरमाया नी
काई आखदी प्रेम दी चाट लगी ताहिओं उसने सीस मुनाया नी
कहन तखत हजारे दा एह जोगी बाल नाथ तों जोग लिआया नी
वारस शाह एह फकर तां नहीं जोगी हीर वासते कन पढ़ाया नी

शब्दार्थ
<references/>