भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
29 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
भाइयां बाझ न मजलसां सोंहदियां ने अते भाइयां बाझ बहार नाहीं
भाई मरन ते पैंदियां भज बाहां बिना भाइयां परे प्रवार नाहीं
लख ओट है भाइयां वसंदयां दी भाइयां गयां जेही कोई हार नाहीं
भाई ढाहुंदे भाई उसारदे ने वारस भाइयां बाझों बेली यार नाहीं
शब्दार्थ
<references/>