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314 / हीर / वारिस शाह

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नयाना तोड़ के ढांडड़ी<ref>गाय</ref> उठ नठी भन दोहनी दुध सब डोहलया ए
घत खैर इस कटक दे मोहरी नूं जट उठके रोह विच बोलया ए
किस लुचड़े देस दा जोगिया तूं ऐथे डंड<ref>शोर</ref> की आन के बोलया ए
सूरत जोगियां दी अखी गुंडयां दी टाप कनकदी ते जिउ डोलया ए
जोगी अखियां कढके घत तिऊड़ी लै के खपरी हथ विच तोलया ए
वारस शाह हुण जोग तहकीक<ref>सच में</ref> होया जीउ शागनी दा अगों बोलया ए

शब्दार्थ
<references/>