भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

315 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जटी बोलके दुध दी कसर कढी सब अड़तने पड़तने पाड़ सुटे
पुने दादे पड़दादे जोगीड़े दे सभे टगने ते साक चाढ़ सुटे
जोगी रोह दे नाल खढ़ लत घती धरौल मारके दंद सब झाड़ सुटे
जटी जिमी ते पटड़े वांग ढठी जिवें वाहरू फड़के धाढ़ सुटे
वारस शाह मियां जिवें मार तेसा फरहाद ने चीर पहाड़ सुटे

शब्दार्थ
<references/>