भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
318 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
जोगी मंग के पिंड तयार होया आटा मेलके खपरा पूरया ए
किसे हस के रूग चा पाया ए किसे जोगी नूं चा वडूरया ए
वारस खेड़यां दी झात पाईया सू जिवें चैधवी दा चंद पूरया ए
शब्दार्थ
<references/>