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323 / हीर / वारिस शाह

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कच कवारिये लोहड़े दीये मारीए नी टूने हारीए आख की आहनी ए
भलयां ना बुरी काहे होवनी एं काई बुरी ही फाउनी फाहनी ए
असां भुखयां आन सवाल कीता केहियां गैब दियां ढुचरां डाहनी ए
विचों पकीए छैल उचकीए नीराह जांदड़े मिरग पई फाहनी ए
गल हो चुकी फेर छेड़नी ए होर शाख नूं मोड़ की वाहनी ए
घर जान सरदारां दे भीख मंगे साडा अरश<ref>आकाश</ref> दा किंगरा ढाहनी ए
केहा नाल परदेसियां वैर चायो चैंचल हारिये आख की आहनी ए
राह जांदड़े फकर खहेड़नी एं ढगी वाहरिये साहनां नूं डाहनी ए
घर पईअड़े<ref>पेके</ref> धरोहियां फेरियां नेआ नीहरिए संग क्यों डाहुनी ए
जा शिकार दरया विच खेड मोईए केहियां मूत विच मछियां फाहुनी ए
वारस शाह फकीर नूं छेड़नी एं अखीं नाल क्यों खखरां लाहुनी ए

शब्दार्थ
<references/>