भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

32 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वाह ला रहे भाई भाबियां भी रांझा रूस हजारयों धाया ई
भुख नंग नूं झागके पंध करके रातीं विच मसीत ते आया ई
हथ वंझली पकड़ के रात अधी औथे रांझे नूं मजा भी आया ई
रन्न मरद न पिंड विच रिहा कोई घेरा गिरद मसीत ते पाया ई
वारस शाह मियां पंड झगड़ियां दी पिच्छे मुलां मसीत दा आया ई

शब्दार्थ
<references/>