भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

348 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फकर शेर दा आखदे हैन बुरका भेत फकर दा मूल ना फोलीए नी
दुध साफ है वेखना आशकां दा शकर विच पयाजना घोलीए नी
घरों खरे जो हस के आन दीजे लईए दुआ ते मिठड़ा बोलीए नी
लइए आख चढ़ायके वध पैसा पर तोल तों घट ना तोलीए नी

शब्दार्थ
<references/>