भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
35 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
मुल्लां आखदा चूंडियां<ref>बस्ता</ref> वेखदियां ई गैर शरह तूं कौन हैं दूर हो ओए
एथे लुचयां दी कोई थां नहीं पटे दूर कर हक मजूर हो ओए
अनहलक कहावना किबर<ref>अहंकार</ref> करके ओढ़क मरेंगा वांग मंसूर हो ओए
वारस शाह न हिंग दी बास छिपे भावें रखीए विच काफूर हो ओए
शब्दार्थ
<references/>