भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

376 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एस घुंड विच बहुत खवारियां ने अग लायके घुंड नूं साड़ीए नी
घुंड हुसन दी आब छुपा लैंदा वडे घुंड वाली रड़े मारीए नी
घुंड आशकां दे बेड़े डोब देंदा मैना ताड़ ना पिंजरे मारीए नी
तदों एह जहान सब नजर आवे जदों घुंड नूं जरा उतारीए नी
घुंड अनयां करे सुजाखयां नूं घुंड लाह मुंह उपरों लाड़ीए नी
वारस शाह ना दबिए मोतियां नूं फुल अग्ग दे विच ना साड़ीए नी

शब्दार्थ
<references/>