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377 / हीर / वारिस शाह
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अखी सामने चोर जे नजर आवे क्यों दुख विच आपनूं गालिए वे
मियां जोगीया झूठियां करे गलां घर होण तां कासनूं भालिए वे
अग बुझी नूं ढेरिआ<ref>बुझ रही आग को फूंक मारकर जलाना</ref> लख दीजन बिना फूक मारी नहीं बालिए वे
हीर वेखके तुरत पछाण लया हस आखदी बात समालिए वे
सहती पास ना खोलना भेत मूले शेर पास ना बकरी पालिए वे
देख माल चुरायके पया मुकर राह जांदड़े कोई ना भालिए वे
वारस शाह मिलखाइयां माल लधा चलो कुजियां बदर<ref>कसम उठाना</ref> पिवालिए वे
शब्दार्थ
<references/>