भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
378 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
केही दसी ए अकल सयाणयां नूं कदी नफर<ref>नौकर</ref> कदीम<ref>पुराना</ref> संभालीए नी
दौलतमंद नूं जाणदा सभ कोई नेहुं नाल गरीब दे पालीए नी
गिधीं बोल ढंडोरड़ा जग सारे जिउ समझ लैखेड़यां वालीए नी
वारस शाह है इशक दा गउतकिया<ref>बड़ा सिरहाना</ref> हुसन वालीए गरम निहालिए नी
शब्दार्थ
<references/>