भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

400 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बांदी हो गुसे चुप हो रही बुक चीने दा चा उलेरया सू
धरोही रब्ब दी खैर लै जा चाका हाल हाल कर पलुड़ा<ref>कपड़े की कन्नी</ref> फेरया सू
बांदी लाड दे नाल चवा<ref>छेड़खानी</ref> करके धका दे के नाथ नूं रढ़या सू
लैके खपरा<ref>भिक्षा पात्र</ref> चोबरा जाह विचों उस सुतड़े नाग नूं छेड़या सू
दे के छिबी<ref>डराना</ref> गल विच पशम पटी हथ जोगी दे मुंह ते फेरया सू
वारस शाह फरंग<ref>अंगरेज</ref> दे बाग बड़के उस कला दे खूह नूं गेड़या सू

शब्दार्थ
<references/>