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418 / हीर / वारिस शाह

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शाला कहर खुदाई दा पेश आवे ठूठा भन के लाड शंगारनी ए
लंक सुकीए रन्ने कलकड़े नी माड़ा वेख फकीर नूं मारनी ए
नाले मारनी ए नक चाढ़नी एं नाले हाल ही हाल पुकारनी ए
मरे हुकम देनाल तां सब कोई बिना हुकम दे खून गुजारनी ए
बुरा नाल जे बोल के बुरे होईए असीं बोलने हां तां तूं मारनी ए
ठूठा फेर दरुसत कर दे मेरा होर आख की सच नतारनी ए
लोक आखदे हन एह कुड़ी कुवारी साडे बाब दी धाड़वी मारनी ए
एडे फंद फरेब हन याद तैनूं मुरदारां दे सिर मुरदारनी ए
घर वालीए वौहटिए बोल तूं भी केही सोच विचार विचारनी ए
सवा मनों मुतहिर<ref>सोटा</ref> पई फुरकदी ए किसे यारनी दे सिर मारनी ए
इक चोर ते दूसरी चतर बनियों वारस शाह तों पुछ के हारनी ए

शब्दार्थ
<references/>