भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

420 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भला आख की आनिए नेक पाके जैदे पलू ते पढ़न नमाज आई
घर बार तेरा असीं कौण कोई जापे लद के घरों जहाज आई
नढे मोहनिए झोटे दोहनिए<ref>दूध दहना</ref> नी अजे तक ना इक थी बाज आई
वारस शाह जवानी दी उमर गुजरी अजे तक ना हिरस थीं बाज आई

शब्दार्थ
<references/>