भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

458 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करामात है कहर दा नाम रन्ने केहा घतयो आन वसूरया ई
करे चावड़ा चिवड़ा<ref>नखरे करना</ref> नाल मसती अजे तीक अनजानां नूं घूरया ई
फकर आखसन सोई कुझ रब्ब करसी एवें जोगी नूं ला वडूरया ई
वारस पंज पैसे रोक लगा धरयो खंड चावला दा थाल पूरया ई

शब्दार्थ
<references/>