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461 / हीर / वारिस शाह

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घर अपने चा चवा कर के आख नागरी वांग क्यों सूकिये नी
नाल जोगियां मोरचा लाया ई रजे जट वांगूं वडी फूकिये नी
जदों बन झड़े थक हुट रहिए जा पिंड दियां रन्नां थे कूकिये नी
कड्ढ गालियां सने रबेल बांदी घिन मोहलियां असां न घूकिये नी
भलो भली जां डिठयो आशकां नूं वांग कुतियां अन्न नूं चूकिये नी
वारस शाह तों पुछ लै बंदगी नूं रूह साज कलबूत विच फूकिये नी

शब्दार्थ
<references/>