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46 / हीर / वारिस शाह
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सैईं वंझीं चनाब दा अंत नाहीं डुब मरेंगा ठिल्ल ना सजना ओ
चाहड़ मोढयां ते तैनूं पार लाइए कोई जान तूं ढिल ना सजना ओ
साडी अकल शहूर<ref>बुद्धि और चेतना</ref> तूं खस लीती रिहा कख दा वॅल ना सजना ओ
वारस शाह मियां तेरे चौखने<ref>कुरबान</ref> हां साडा कालजा सॅल ना सजना ओ
शब्दार्थ
<references/>