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471 / हीर / वारिस शाह

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सहती जा के हीर दे कोल बहके भेत यार दा सब समझया ई
जिसनूं मारके घरों फकीर कीतो उही जोगिड़ा होयके आया ई
उहनूं ठग के महियां चराइयां नी एथे आन के रंग वटाया ई
तेरे नैनां ने चा मलंग कीता मानों इसनूं चा भुलाया ई
ओह वी कन्न पड़वा के आन लथा आप वहुटड़ी आन सदाया ई
आप हो जुलेखां दे वांग सची उहनूं यूसफ चा बनाया ई
दिते कौल करार विसार सारे आंन सैंदे नूं कौंत<ref>घरवाला</ref> बनाया ई
होया चाक पिंडे मली खाक रांझे कन्न पाड़ के हाल वजाया ई
देनेदार मवास<ref>आकी</ref> हो कढ उसनूं कल मुहलियां नाल कुटाया ई
हो जाए निहाल ते करे जिआरत तैनूं बाग विच उस बुलाया ई
जिआरत मरद कफारत<ref>कपकारा, प्रायश्चित</ref> दी होसियाई नूर फकर दा वेखना आया ई
बहुत जुहद<ref>तपस्या</ref> कीता मिले पीर पंजे मैंनूं कशपफ दा जोर विखाया ई
झब नजां<ref>मौत का समय</ref> लैके मिले हो रयत<ref>जनता</ref> फौजदार तयार हो आया ई
इहदी नजर नूं आबेहयात उस दा केहा झगड़ा भाबीए लाया ई
चाक लायके कन्न पड़वायों ई नैनां वालीए गजब क्यों ढाया ई
बचे ऊह फकीरां तो हीर कुड़ीएहथ बन्ह के जिन्हां बखशाया ई
इके मार जासी इके तार जासी झुल मीह निअउं दा आया ई
अमल फौत<ref>सुन्न, ना होने के बराबर</ref> ते वडी दसतार फुली केहा भीलने सांग बनाया ई
वारस कौल भुलायके खेड रूधे केहा नवां मखौल जगाया ई

शब्दार्थ
<references/>