भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
490 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
किसे केहे नपीढ़ नपीढ़िए तूं तेरा रंग है तोरी दे फुल दानी
ढाकां तेरियां किसे मरोढ़ियां नी एह कम होया हिलजुल दा नी
तेरा लक किसे पायमाल कीता धका कुल वजूद विच खुलदा नी
वारस शाह मियां एहो दुआ मंगे वारा खुलदा जावे अज कुल दा नी
शब्दार्थ
<references/>