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510 / हीर / वारिस शाह

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अजराइल इक उमर अयार<ref>चालाक</ref> दूजी हीर चल के सस तें आंवदी ए
सहती नाल मैं जाय के खेत वेखां पई अंदरे उमर विहांवदी ए
पिछों झिकदी नाल बहानयां दे पढी घड़ी घड़ी फेरे पांवदी ए
वांग ठगां दे कुकड़ा रात अधी अजगैब<ref>अनदेखा</ref> दी बांग सुनांवदी ए
चल भाभिए वाउ जहान दी लै बाहों हीर नूं पकड़ उठांवदी ए
काजी लानत अल्लाह<ref>भगवान की ओर से दुत्कारा हुआ</ref> देह देह फतवां इबलीस नूं सबक पढ़ांवदी ए
एहनूं खेत लैं जाह कपाह चुनिए मेरे जिउ तदबीर एह आंवदी ए
वेखो माउ नूं धी वलाय के ते केही फोकियां रूमियां<ref>फरेब देना</ref> लांवदी ए
तली हेठ अंगियार टिका सहती उतों बहुत प्यार करांवदी ए
शेख सादी दे फलक<ref>आसमान</ref> नूं खबर माही जिकूं रोयके फंद चलांवदी ए
वेख धी अगे माउं झुरन लगी हाल नुंह दा खोल सुनांवदी ए
एहदी पई दी उमर विहांवदिए जारो जार रोवदी ते पलू पांवदी ए
किसे मना किता खेत ना जाये कदम मंजीओं हेठ ना पांवदी ए
दुख जिओ दा खोल हकिम अगे किस्सां दिले दे फोल सुनांवदी ए
इनसाफ दे लई गवाह करके वारस शाह नूं पास बहांवदी ए

शब्दार्थ
<references/>