भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
524 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
दरद हीर ते दारू होर करदे फरक पवे ना लोड़ विच लुड़ी जे नी
रन्नां वेखके आंहदियां जहर पानी कोई साईत ही जिउंदी कुड़ी जे नी
हीर काख दी जहर जे खिंड चली जिबें कालजा चीर दी लुरी जे नी
मर चली जे हीर सयाल भावे भली बुरी उथे आन जुड़ी जे नी
जिस वेले दी सूरती जे इस सुधी भागी हो गई पुड़ी जे नी
वारस शाह सदाईए वैद रांझा जिस ते दरद असाडे दी पुड़ी जे नी
शब्दार्थ
<references/>