भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
52 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
रात हस के खेड गुजारीया सू सुबह उठ के जीउ उदास कीता
राह जांदड़े नूं झुगी नजर आई डेरा चा मलाहां दे पास कीता
अगे पलंघ बेड़ी विच विछिआ सी उते खूब विछौना रास कीता
इथे जा वजा के वंझली नूं चा पलंग उते आम खास कीता
वारस शाह जां हीर नूं खबर होई तेरी सेज दा जट ने नास कीता
शब्दार्थ
<references/>