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534 / हीर / वारिस शाह

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खेड़े निशा<ref>तसल्ली</ref> दिती अगे जोगीड़े दे सानूं कसम है पीर फकीर दी जी
मरां होए के एस जहान कोहड़ा कदे सूरत जे डिठी है हीर दी जी
सानूं हीर जटी धौली धार दिसे कोह<ref>पहाड़</ref> काफ<ref>हसीन औरत</ref> ते धार कशमीर दी जी
लंका कोट पहाड़ दा परा दिसे फरहाद नूंनहर जो शीर<ref>दूध</ref> दी जी
दूरों वेखके फातिहा आख छडां गुरु पीर पंजाब दे पीर दी जी
सानूं कहिकहा<ref>हँसी</ref> कंध दे वांग दिसे ढुका नेड़े ते कालजा चीर दी जी
उसदी झाल ना असां थी जाए झली झाल कौन झले जटी हीर दी जी
भैंस मार के ते सिंग नाद ढोई ऐवे हवस गई दुध खीर दी जी
लोक आखदे हुसन दा दरया वगे सानूं खबर ना ओसदे नीर दी जी
वारस शाह झूठ ना बोलीए जोगियां ते खयानत ना करीए मीर पीर दी जी

शब्दार्थ
<references/>