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566 / हीर / वारिस शाह

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काज़ी खोह दिती हीर खेड़यां नूं यारो एह फकीर दगौलिया<ref>पाखंडी</ref> जे
विचों चोर ते यार ते लुचा लुंडा वेखो बाहरूं वली ते औलिया जे
दगेदार ते झागडू कलाकारी बनी फिरे मुशायख<ref>सूफी, भगत</ref> मौलिया जे
वारस दगे ते आवे तां सफ गाले अखीं मीट बहि जापे औलिया जे

शब्दार्थ
<references/>