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588 / हीर / वारिस शाह

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हीर रूह ते चाक कलबूत जानो बालनाथ एह पीर बनाया ई
पंज पीर ने पंज खवास<ref>खास, मददगार</ref> तेरे जिन्हां थापना तुध नु लाया ई
काज़ी हक झंवेल ने अमल तेरे अयाल मुनकिर नकीर<ref>चित्रगुप्त</ref> ठहराया ई
कोठा गैर दा अते अजराईल खेड़ा जेहड़ा लैंदा ई रूह नूं धाया ई
सइयां हीर दीयां घर बार तेरा जिन्हां नाल पैवंद<ref>रिश्ता</ref> बनाया ई
कैंदों लंगा शैतान मलऊन<ref>दुतकारा हुआ, जिस पर लानत बरसे</ref> जानों जिसने विच दीवान फड़ाया ई
बांग हीर दे बन्ह लै जान तैनूं किसे नाल ना साथ लदाया ई
जेहड़ा बोलदा नातका<ref>बोलने की क्षमता</ref> वंझली दा जिस होश दा राग सुनाया ई
सहती मौत ते जिसम है यार रांझा उन्हां दोहां ने भेड़ मचाया ई
शैहवत भाबियां ते भुख रवेल बांदी जिन्हां जन्नतों बाहर कढाया ई
जोगी तारक<ref>त्यागी</ref> बणया कन्न पाड़ जिसने सभ अंग भबूत रमाया ई
दुनियां जाण एवे जिवे झंग पेके गैर कालड़ा बाग बनाया ई
त्रिंजन एह बद-अमलियां तेरियां ने कढ भिशत थीं दोजखी पाया ई
ओह मसीत है माऊ दा शिकम<ref>गर्भ</ref> बंदे जिस विच शब-रोज<ref>रात-दिन</ref> लंघाया ई
अदली राजा ते नेक ने अमल तेरे जिस हीर ईमान दिवाया ई
वारस शाह मियां बेड़ा पार तिन्हां जिन्हां रब्ब दा नाम धिआया ई

शब्दार्थ
<references/>