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61 से 69 / कन्हैया लाल सेठिया

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61.
(ज्यूं) हंसा करत जुहार, सूख्यो सरवर देख कर
(त्यूं) मुतलबियो संसार, राख चीत तू रमणियां।

62.
स्वारथ रो संसार, बिन स्वारथ बोलै नहीं
गिरधर है आधार, रीझ भजो थे रमणियां।

63.
बो तो है सब ठौर, मन्दिर मसजिद के धर्यो ?
करो जठै ही गौर, रमै बठै ही रमणियां।

64.
जठै मिलै सनमान, बठै ही बैठक भली
जठै सुयष री हाण, रहो न पल भर रमणियां।

65.
समझो जठै ही देव, च्यानणूं हिव में रखो
नहीं भींत रो लेव, रीझ न जाज्यो रमणियां।

66.
धरम एक आधार, साथ न छोड़ै अन्त तक
धन धरती संसार, रवै न साथै रमणियां।

67.
फळ करणी रा त्यार, पड़सी सै नै भुगतणां
करो उपाय हजार, रती न छुटैं रमणियां।

68.
मौज मजा आराम, कर भलाईं मिनख तूं
भज पण हरि रो नाम, रीझ घड़ी भर रमणियां।

69.
गरज सरै कद केह, बता सरूं भोळा मिनख ?
छीजै खाळी देह, रीस कियां स्यूं रमणियां।